भारतीय इतिहास में 1893 ई० के वर्ष को एक परिवर्तन बिन्दु
के रूप में देखा जाता है ...
परिवर्तन न०-1:-
वैसे तो हम भारतीयों को
अपनी संस्कृति पर बहुत गर्व है | इसकी डंका तो 1893 ई० में ही बज गया था, स्वामी
विवेकानंद जी के द्वारा | जी हाँ, आपने सही सुना उनके द्वारा ही बजाया गया था |
जब 1893 ई० में स्वामी
विवेकानन्द जी अमेरिका के शिकागो शहर में सितम्बर में हो रहे (सर्व धर्म )सभी
धर्मो के सम्मलेन में पहुँचे और सम्मलेन के पहले दिन ही उन्हें दो मिनट बोलने का
समय दिया गया| जैसे ही स्वामी विवेकानंद जी ने अपने वक्तव्य का सम्बोधन “अमेरिका के भाइयो और बहनों” के साथ शुरू किया, तालियों की गड़गड़ाहट ने न केवल उन्हें,
बल्कि भारत को सम्पूर्ण संसार के सर्वोच्य देशो में लाकर खड़ा कर दिया| उस समय
उन्हें “तूफानी हिन्दू” कहा जाने लगा|
परिवर्तन न०-2:-
16 नवम्बर, 1893 ई० को ही
एनी बेसेंट भारत आयी और वाराणसी शहर में रहने लगी| उन्होंने भारतीयों से कहा कि, “मै हृदय से तुम्हारे साथ हूँ और संस्कृति से भी
तुम्ही लोगो में से एक हूँ|”
परिवर्तन न०-3:-
1893 ई० में 14 वर्ष
के बाद योगीराज अरविन्द घोष की भारत की भूमि पर वापसी हुई | 1893 में ही उन्होंने
ने एक लेखमाला “न्यू लैंप फॉर ओल्ड” प्रकाशित किया था |
परिवर्तन न०-4:-
1893 ई० में
राष्ट्रपति महात्मा गाँधी अब्दुल्ला सेठ नामक व्यापारी के मुकदमे में दक्षिण
अफ्रीका गये थे|
परिवर्तन न०-5:-
यदि क्रन्तिकारी
गतिविधियों की दृष्टि से भी देखा जाये तो 1893 का वर्ष महत्वपूर्ण है| नासिक में
चापेकर बंधुओ(दामोदर और बालकृष्ण) ने गुप्त संस्था “सोसायटी फॉर दी रिमूवल ऑफ ओब्स्टेकल्स टू दी
हिन्दू रिलिजन” स्थापित किये थे|
परिवर्तन न०-6:-
1893 ई० में ही बाल
गंगाधर तिलक ने गणपति उत्सव मानना प्रारम्भ किया था |
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